Thursday, October 21, 2010

वो चली गई

वो चली गई... चूप-चाप, ख़ामोशी को ओढ़े ठीक वैसे ही जैसे उसे ओढ़े पूरी जिंदगी निकाल दी थी. पापा अक्सर बाऊ जी को याद करते थे अब बीबी जी को भी सिर्फ याद करेंगे. मैने कभी बाऊ जी को नहीं देखा इसलिए कभी उनकी याद भी न आई. लेकिन बीबी जी को तो मैं जानती थी, कम ही सही पर जानती थी. 
आज ज़रा मुश्किल सा है उनकी छवि बनाना, कैसी थी वो? कुछ साल पहले तक तो सफेद बालों में काली परांदी नज़र आती थी वो भी गोल से बंधे बालों में उलझी हुई. हलके रंग के सूट और उससे भी फीका दुप्पटा जो उनके सफेद चमकते बालों को कभी कभी ढक दिया करता था. पहाड़ों में हो कर भी उनकी वो पंजाबी सी बोली, "मधु... ना पुत्तर इंज नी करीं दा...". मुझे मधु बुलाने वालों में वो भी एक थी. पापा की ताई जी, हमारी बीबी जी अब मुझे कभी मधु नहीं बुलाएंगी, कभी मुझे डाटेंगी भी नहीं और उनकी आवाज़ घर की दीवारों से टकरा कर कभी वापिस नहीं आयेगी. 
वो हमेशा याद आयेंगी कभी मेरी माँ की सास बन कर और कभी पापा की बड़ी माँ. रिश्ता जो भी हो लेकिन नाम सिर्फ एक रहेगा बीबी जी, हमारी बीबी जी. 
पापा से नाराज़ हूँ उन्होंने बताया भी नहीं, माँ से तो बहुत खफा हूँ उन्होंने आने नहीं दिया और आपसे... जानती थी ना आप की कभी बात नहीं करुँगी आपसे, क्योंकि अपने अपनी बीमारी की खबर भी ना दी. इसीलिए बिना खबर दीये ही चली गई ना आप. 
मना लिया होता बीबी जी, आप एक बार प्यार से मधु कहती और मैं दूसरा सवाल भी ना करती. आपने तो एक मौका भी नहीं दिया. पापा कहते हैं की बाऊ जी आपको बड़े शोर शराबे  के साथ हमारी जिंदगी में लाये थे तो फिर आप इतनी ख़ामोशी से हमारी जिंदगी से क्यों चली गई? क्यों?