Sunday, September 2, 2012

रोना चाहती हूँ, दिल खोल कर रो लेना चाहती हूँ. रो भी लेती हूँ लेकिन हर बार  कहीं  कुछ   दबा  सा,  फंसा  सा  रह  जाता  है  ... पता  नहीं  कौन सा  हिस्सा  है  वो  मेरा  जो  चाह  कर भी  मुझसे जुदा  नहीं  हो  पाता  है  ... कुछ  दिन  पहले  एक  कहानी  लिखने  की  कोशिश  की  थी  ... कुछ  हिस्सा  तो  लिख  भी  लिया  था  ... मगर  वो  कहानी  अधूरी  रह  गई ...  मेरी कहानी भी अधूरी रह गई ... 

गला बहुत बार घुटता है ... दोस्तों संग बैठे  मुस्कुरा भी लेती हूँ लेकिन ... कुछ लिख नहीं पाती आज कल ... और बर्दाश्त  नहीं होता अब ... कभी कभी सोचती हूँ की ऐसे जीने से मरना बेहतर है ... मरने की तरकीबें भी तलाश लेती हूँ जिसमे दर्द थोड़ा कम हो और तडपना न पड़े ... लेकिन फिर ... मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ जाती है रोज़ रोज़ मरने की और मैं एक ही बार मरने का ख़याल छोड़ देती हूँ ... 

Monday, August 27, 2012

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जब ऐसा लगा की सब कुछ खत्म हो गया तभी ... "जिया  ... मुझे मेरी जिया से बात करनी है" ... और जब उम्मीद थी ... जिंदा थी आखिरी दम तक ... तो उसे तडपा तडपा कर मार दिया गया ... वो भी रोया, मैं भी और ...
"मैने कभी नहीं सोचा था ये इस तरह खत्म होगा"...
"कोई नहीं सोचता ऐसा" ...
"मैने कभी सोचा ही नहीं था की ये खत्म भी होगा" ...
"ह्म्म्म" ...
किसी की क्या गलती थी और क्या नहीं, अब कोई फरक नहीं पड़ता ... सच्चाई ये है की ... जो दो इन्सान पिछले तीन साल से एक दुसरे के साथ रहने के वादे कर रहे थे, दावा करते थे की बहुत प्यार करते हैं आज साथ नहीं है ... ब्रेअकप ... हाँ ऐसा ही कुछ हुआ उन दोनों के बीच ... लेकिन क्या वो ये चाहते थे ???... शायद नहीं ... लेकिन हो भी तो सकता है ... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है ... होने को तो ये भी हो सकता है कि कल को सब ठीक हो जाये ... भूल जाएँ कि बीते कल में क्या हुआ था और साथ में एक नयी शुरुआत करें ...   ... जिया रोज़ उसे इसी उम्मीद में कॉल करती है सुबह शाम गुड मोर्निंग गुड नाईट के मेसेज करती है ... लेकिन उसकी उम्मीद  ... 
जब उम्मीद के बाँध में, जो उसके आंसुओं को रोके हुए था, दरारें आ जाती है तो टप टप बहते वो आंसू उसे उसकी कमजोरी का एहसास दिलाते हैं ... ऐसे में वो अक्सर खिड़की से एक अलग दुनिया निहारने को कोशिश करती है... अपनी डाईरी के पन्नों को खोले अपने एहसासों की स्याही से कुछ लिखती रहती है ... शायद उसे इन पन्नों में पा लेना चाहती है, जी लेना चाहती है...  

 " बीते साल की बीती दिसम्बर ... सोचती हूँ काश मैने उसे सब कुछ न बताया होता ... मैने उसे कुछ न बताया होता तो वो आज मेरे साथ होता ... मेरे साथ, प्यार से बात करता हुआ, मुझे अपनी जिया कहता हुआ ... 
क्यों किया था मैने वो सब ... सोचा था वो समझेगा ... लेकिन क्या ? कि वो लड़की जिसे वो बहुत चाहता है शायद किसी और से प्यार करती है ... शायद ... बहुत ही नाज़ुक सा ये शब्द शायद अक्सर अनसुना कर दिया जाता है और उसने भी यही किया  ... मैने उसे कहा था कि ... शायद मैं रोहन के लिए कुछ फील करती हूँ. कहा कहाँ था हमेशा कि तरह लिखा था . मेरी डाईरी का वो पन्ना पढने के बाद प्रदीप 5 मिनट तक कुछ नहीं बोला ... मेरे बहुत पूछने के बाद भी जवाब में मुझे सिर्फ उसके आंसू ही मिले ... बहुत बुरा लगा था उस दिन मुझे मैने एक फौजी को रुला दिया था...मैं अपने साथ हुई हर बात उसे बता देना चाहती थी जो तब हुई जब वो पास नहीं था ... रोहन की तरफ मेरा लगाव भी तो तब ही था जब प्रदीप मेरे पास नहीं था ... उसे सब सच बता देना मेरी वफ़ा नहीं थी, शायद बेवफाई के अहसास का पश्चाताप था... उसे तो यही लगा .. उस दिन पहली बार मैने उसके मुह से ब्रेकअप सुना था ... और आज आठ महीने बाद ... 
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क्यों हुआ ये सब... क्यों ... 
मैं पल भर के लिए आंखें बंद करूं और ये सब बदल जाये ... काश ... "