देखा कितना सब कुछ जानते हैं हम लेकिन फिर भी वही करते हैं जो नहीं करना चाहिए ... क्यों ??? फिर जब कुछ देर बाद एहसास होता है तो लगता है कि गाड़ी तो स्टेशन से निकल चुकी है जैसे एक रात मैं उस अँधेरे से निकल आई थी. अँधेरे को पीछे छोड़ते वक्त मैने यह न जाने क्यों नहीं सोचा था कि रौशनी में ये आंखें कहीं मेरा साथ तो नहीं छोड़ जाएँगी ...
उस अँधेरे में एक शक्श पीछे छुट गया ... आज लगता है कि शायद मेरा अक्स पीछे छूट गया ... लौट आना चाहा संग उसके मैने दुनिया मैं लेकिन रौशनी से गुज़ार कर फिर अँधेरे में डर लगता है .... और भागती रहती हूँ मैं ख़ुद से ही यह कह कर कि मेरा अक्स मेरे साथ है ...