Thursday, November 11, 2010

कान्हा माखन चुरा कर भाग जाते थे...  चोर चोरी कर के भाग जाता है... और मैं ??? भागना कितना आसन होता है न... लेकिन शायद उससे भी आसन होता है हालत का सामना करना. दुनिया भर की हिम्मत जुटा कर बस एक बार हालत को अपना मुह दिखा दो, कुछ पल के लिए सह लो, सुन लो और फिर .... फिर हर पल उसी हालत से जूझना नहीं पड़ेगा ... उससे मुझ छिपा कर भागना नहीं पड़ेगा ... 
देखा कितना सब कुछ जानते हैं हम लेकिन फिर भी वही करते हैं जो नहीं करना चाहिए ... क्यों ??? फिर जब कुछ देर बाद एहसास होता है तो लगता है कि गाड़ी तो स्टेशन से निकल चुकी है जैसे एक रात मैं उस अँधेरे से निकल आई थी. अँधेरे को पीछे छोड़ते वक्त मैने यह न जाने क्यों नहीं सोचा था कि रौशनी में ये आंखें कहीं मेरा साथ तो नहीं छोड़ जाएँगी ... 
उस अँधेरे में एक शक्श पीछे छुट गया ... आज लगता है कि शायद मेरा अक्स पीछे छूट गया ... लौट आना चाहा संग उसके मैने दुनिया मैं लेकिन रौशनी से गुज़ार कर फिर अँधेरे में डर लगता है .... और भागती रहती हूँ मैं ख़ुद से ही यह कह कर कि मेरा अक्स मेरे साथ है ... 

5 comments:

  1. "भागती रहती हूँ मैं ख़ुद से ही यह कह कर कि मेरा अक्स मेरे साथ है ..."

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  2. boho hi acchi rachna.... aapki rachna me sachme mujhe prerit kiya hamesha sach ka samna karne ke liye :)

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  3. rachana sundar hai vishali singh hetp://bhopal reporter.blogspot.com

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  4. "भागती रहती हूँ मैं ख़ुद से ही यह कह कर कि मेरा अक्स मेरे साथ है ..."

    हृदयस्पर्शी विचार... निशा .....

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